जानिये भारत का एक एसा गांव जहां आज भी लोग रावण की पूजा करते है

दशहरा का आयोजन लगभग पूरे देश में किया जा रहा है। इसको बुराई पर अच्‍छाई का प्रतीक माना जाता है। लेकिन आज भी देश में ऐसी एक नहीं कई जगह हैं जहां पर दशहरा इस रूप में नहीं मनाया जाता है। इतना ही नहीं कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां पर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण का पुतला तक जलाना निषेध है। इसके अलावा कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां रावण की पूजा होती है और दशहरा वाले दिन उसके निधन पर शोक मनाया जाता है।

आप सभी इस बात को भली भांति जानते हैं कि रावण जैसा विद्वान आज तक दूसरा कोई नहीं हुआ। इसके अलावा उसकी बराबर शिवभक्‍त भी कोई नहीं हुआ है। रावण को लेकर कई तरह की बातें कही जाती हैं, लेकिन आप इनके बारे में कितना कुछ जानते हैं। यदि नहीं जानते हैं तो आज हम आपको दशहरा और रावण से जुड़ी कुछ ऐसी बातों के बारे में बताएंगे जिन्‍हें जानकर आप भी निश्चित तौर पर कहेंगे कि अच्‍छा ऐसा भी होता है।

दशहरा पर जहां बुराइयों का प्रतीक मानकर सारे देश में रावण के पुतले का दहन किया जाता है तो ठीक इसके विपरीत विदिशा जिले की नटेरन तहसील के रावण गांव में रावण की पूजा अर्चना पूरे श्रद्धा भाव से की जाती है. वर्षों से चली आ रही इस परंपरा को ग्रामवासी पूरी भक्ति से पूरा कर रहे हैं. व‍िद‍िशा, मध्य प्रदेश में स्थ‍ित है.

रावण नाम के इस छोटे से गांव में रावण को देवताओं की तरह पूजा जाता है. गांव में कोई भी शुभ कार्य हो, शादी-विवाह या बच्चों का जन्मोत्सव हो तो सबसे पहले यहां आकर ग्रामीण दंडवत होते हैं, फिर काम की शुरुआत करते हैं.

व‍िजयादशमी पर इस मंदिर में पूजा अर्चना भंडारे का आयोजन किया जाता है. राबण बब्बा के नाम से रावण का का मंद‍िर फेमस है. यहां जो भी कोई नया वाहन खरीद कर लाते हैं, वह उस पर ‘जय लंकेश’ ल‍िखवाते हैं

ग्रामवासियों की यह धारणा है कि अगर कोई भी कार्य करने से पहले यदि रावण की पूजा अर्चना नहीं की तो कोई ना कोई अनर्थ अवश्य हो जाता है

रावण पूजा को लेकर इस गांव में कई प्रकार की किंवदंती और कहानियां प्रचलित हैं. ग्रामीण कहते हैं कि पास ही की पहाड़ी पर रहने वाला एक राक्षस, रावण के बल को बार-बार चुनौती देता था और उससे लड़ने लंका जाता था. रावण ने उससे एक बार कहा कि तुम अपने ही क्षेत्र में एक रावण की प्रतिमा बनवा लो और वहीं उस से युद्ध किया करो. राक्षस का कहना था कि जब मैं आपके सामने आता हूं तो मेरा बल कम हो जाता है.

दिल्‍ली के नजदीक है रावण का गांव

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेटर नोएडा से 10 किलोमीटर दूर है रावण का पैतृक गांव बिसरख। यहां न रामलीला होती है, न ही रावण दहन किया जाता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। मान्यता यह भी है कि जो यहां कुछ मांगता है, उसकी मुराद पूरी हो जाती है। इसलिए साल भर देश के कोने-कोने से यहां आने-जाने वालों का तांता लगा रहता है। साल में दो बार मेला भी लगता है। इस गांव में शिव मंदिर तो है, लेकिन भगवान राम का कोई मंदिर नहीं है।

जब देशभर में जहां दशहरा असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वहीं रावण के पैतृक गांव नोएडा जिले के बिसरख में इस दिन उदासी का माहौल रहता है। यहां पर रावण का पुतला जलाना अपशकुन माना जाता है। माना जाता है कि रावण के पिता विशरवा मुनि के नाम पर ही गांव का नाम पड़ा। गांव में रावण का मंदिर बना हुआ है। मान्यता है कि रावण के पिता विशरवा मुनि ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बिसरख गांव में अष्टभुजा धारी शिवलिग स्थापित कर मंदिर का निर्माण किया था। पूर्व में यह क्षेत्र यमुना नदी के किनारे घने जंगल में आच्छादित था।

रावण के मंदिर

आपको यहां पर ये भी बता दें कि देश में कई जगहों पर रावण के मंदिर मौजूद हैं जहां पर शिव के साथ रावण की भी पूजा अर्चना नियमित तौर पर की जाती है। ऐसे मंदिर रावण के गांव बिसरख के अलावा गुजरात के कोटेश्‍वर‍, विदिशा रावणग्राम और मुरुदेश्‍वरा मंदिर में रावण की मूर्तियां हैं। श्रीलंका के कोणेश्‍वरम मंदिर में भी रावण की मूर्ति है। यह दुनिया में रावण के सबसे महत्‍वपूर्ण मंदिरों में से एक है। इसके अलावा आंध्र प्रदेश के काकीनादा में भी रावण का मंदिर मौजूद है। जोधपुर के माउदगिल ब्रह्माण रावण के ही वंशज माने जाते हैं। उन्‍होंने जोधपुर में रावण के मंदिर का निर्माण करवाया है। कहा ये भी जाता है कि रावण की पत्‍नी मंदोदरी यहां की ही थी। यहां पर रहने वाले करीब 200 परिवार खुद को रावण का वशंज बताते हैं और रावण की पूजा करते हैं।

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Author: Team AI News

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