शहर में टेसू और झांझी की दुकानें सज गई घर-घर गूंजेंगे टेसू के गीत
परंपरा के अनुसार दशहरा से टेसू-झांझी का खेल शुरू हो जाता है। यह खेल पूर्णिमा तक चलता है। आज से घर-घर टेसू और झांझी के गीत सुनाई देने लगेंगे। शहर में टेसू और झांझी की दुकानें सज गई हैं। सोमवार को बड़ी संख्या में बच्चों ने अपने माता-पिता के साथ शहर पहुंचकर टेसू और झांझी (सांझी) की खरीदारी की।
पांच दिन तक बालकों की टोलियां टेसू लेकर भिक्षाटन करती हैं, जबकि बालिकाओं की टोलियां झांझी के साथ भिक्षाटन करती हैं। पूर्णिमा के दिन टेसू का झांझी के साथ धूमधाम से विवाह कराया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से हिंदू रीतिरिवाज के शादी विवाह भी शुरू हो जाते हैं। सोमवार को शहर में कई स्थानों पर टेसू व झांझी की दुकानें सजी देखीं गईं। जहां बच्चों ने अपने माता-पिता के साथ पहुंचकर खरीदारी की। कुछ स्थानों पर टेसू व झांझी बनते हुए भी नजर आए।
यह लोक परंपरा महाभारतकाल से जुड़ी है। भीम के बेटे घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक को महाभारत में सेना का विनाश करते देख श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उनका सिर काटकर पहाड़ी पर एक पेड़ रख दिया था। युद्ध के बाद बर्बरीक की इच्छा पूरी करने के लिए शरद पूर्णिमा को विवाह निश्चित किया। तभी से यह लोक परंपरा चली आ रही है।
मानू, काशी, विश्वनथ प्राची मीनाक्षी यह सब नाम उन बच्चों के हैं, जो मथुरा के होलीगेट पर जोगी गली के रहने वाले हैं। शाम होते ही ये बच्चे टोली बनाकर शहर के मुख्य स्थल होली गेट चौराहे पर टेसू झांसी हाथ में लेकर निकल पड़ते हैं। हर दुकान, प्रतिष्ठान और कार्यालय में पहुंचकर उनके दवारा पारंपररिक गीतों को गाकर अनजाने में ही सही परंपरा को बचाए हुए हैं।