जानिए खूनी दरवाजे बाला अटेर का किला , जो चंबल नदी के किनारें बीहड़ों के बीच में स्थित है
चंबल नदी के किनारें ये किला चम्बलों के बीहड़ों के बीच में स्थित है। मध्य प्रदेश के चम्बल का बीहड़ क्षेत्र अनेक रहस्यों के लिए जाना जाता है । अटेर दुर्ग की ऐतिहासिक इमारत आज भी भदावर राजाओं की शौर्यगाथाओं को बयां करती है। शौर्य के प्रतीक लाल दरवाजे से ऐतिहासिक काल में खून टपकता था, इस खून से तिलक करने के बाद ही गुप्तचर राजा से मिल पाते थे।
आज भी इस दरवाजे को लेकर कई कहानियां प्रचलित है। खूनी दरवाजे का रंग भी लाल है। इस के ऊपर वह स्थान आज भी चिन्हित है जहां से खून टपकता था। इसी तरह ये रहस्मयी किला भी बेहद ख़ास है जिसके साथ जुड़ी हैं कई कहानियां । जी हां हम बात कर रहे हैं चंबल के अटेर के किले की।
यह एक मध्ययुगीन किला है। यह किला चंबल नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है जहां सदियों तक भदावर राजाओं ने शासन किया। इसी वंश के साथ जुड़ा है रहस्य जो अटेर के किले को और भी खास बनाता है। अटेर का किला सैकड़ों किवदंती, कई सौ किस्सों और न जाने कितने ही रहस्य को छुपाए हुए चुपचाप सा खड़ा दिखाई देता है। जैसे मानो अभी उसके गर्त में और भी रहस्य हों।
अटेर का किला चम्बल नदी के किनारे एक ऊंचे स्थान पर स्थित है। महाभारत में जिस देवगिरि पहाड़ी का उल्लेख आता है यह किला उसी पहाड़ी पर स्तिथ है। इसका मूल नाम ‘देवगिरि दुर्ग’ है। हिन्दू और मुगल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है
इस किले का निर्माण भदौरिया राजा बदनसिंह ने 1664 ई. में शुरू करवाया था। भदौरिया राजाओं के नाम पर ही भिंड क्षेत्र को पहले ‘बधवार’ कहा जाता था। गहरी चंबल नदी की घाटी में स्थित यह किला भिंड जिले से 35 कि.मी. पश्चिम में स्थित है। भदावर राजाओं के इतिहास में इस किले का बहुत महत्व है। यह हिन्दू और मुगल स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है।
खूनी दरवाजे का रंग भी लाल है। इस पर ऊपर वह स्थान आज भी चिन्हित है जहां से खून टपकता था। इतिहासकार और स्थानीय लोग बताते है कि भदावर राजा लाल पत्थर से बने दरवाजे के ऊपर भेड़ का सिर काटकर रख देते थे दरवाजे के नीचे एक कटोरा रख दिया जाता था। इस बर्तन में खून की बूंदें टपकती रहती थी। गुप्तचर बर्तन में रखे खून से तिलक करके ही राजा से मिलने जाते थे, उसके बाद वह राजपाठ व दुश्मनों से जुड़ी अहम सूचनाएं राजा को देते थे। आम आदमी को किले के दरवाजे से बहने वाले खून के बारे में कोई जानकारी नहीं होती थी।
अटेर दुर्ग के ऐतिहासिक प्रवेश द्वार का निर्माण राजा महासिंह ने कराया था। इस दुर्ग की जनश्रुतियां आज भी प्रचलित है। लाल पत्थर से बना यह प्रवेश द्वार आज भी खूनी दरवाजे के नाम से प्रचलित है।