बिहार में हर साल बाढ़ क्यों आती है ? सरकार से पूछिए तो उनका एक ही जवाब होता है, प्रकृति और नेपाल का दोष। ये एक बेशर्म बयान है जो सरकार हर साल अपने नकारेपन को छुपाने के लिए देती है। वास्तव में बिहार सरकार ने कभी बाढ़ के स्थाई निदान और समाधान के लिए प्रयास ही नहीं किया है।
असलियत में बिहार सरकार और उनकी पूरी व्यवस्था बाढ़ का इंतजार करती है, उसे आमंत्रण देकर बुलाती है। बाढ़ एक ईंधन है इनके पूरे भ्रष्ट सिस्टम को चलाने का। राहत, बचाव, कटाव रोकथाम, तटबंध और पुनर्वास के नाम पर हर साल अरबों रुपया खर्च होता है। यूरोप में एक देश है नीदरलैंड। समुद्र के पानी से परेशान हुआ करता था, हरेक साल बाढ़ से पीड़ित। वहां के सरकार ने बाढ़ के स्थाई निदान ( परमानेंट सॉल्युशन ) ढूंढने की कोशिश की। नहरें खुदवाई, तालाब बनवाया, बांध बनवाया, वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाया। और आज नीदरलैंड ना केवल बाढ़ से मुक्त है बल्कि जल के प्रबंधन के लिए भी मशहूर है।
आज पानी वहां के कृषि, ट्रांसपोर्टेशन, टूरिज्म, इलेक्ट्रिसिटी सबका साधन बना हुआ है। आज डच वॉटरमास्टर कहे जाते हैं और दूसरे देशों को अपना बाढ़ प्रबंधन तकनीक एक्सपोर्ट करते हैं।
बिहार भी हरेक साल बाढ़ से पीड़ित होता है। हरेक साल बरसात में बाढ़ से बिहार के मिथिला क्षेत्र में लोगों का घर, जानवर, जान, संपत्ति सब बह जाता है और लाखों लोगों की जिंदगी तबाह हो जाती है।
प्रत्येक साल बिहार सरकार बाढ़ के बाद अनुदान, राहत के नाम पर हजारों करोड़ रुपए का घोटाला करवाती है और फिर अगले साल बाढ़ आने का कामना करती है। क्या बिहार में बाढ़ का स्थाई समाधान नहीं हो सकता है ? क्या बिहार में बाढ़ को रोका नहीं जा सकता ? बिल्कुल हो सकता है। ना केवल बाढ़ रोका जा सकता है बल्कि इस प्रचुर जल संसाधन के प्रबंधन से यहां सिंचाई, बिजली, ग्राउंड वाटर, ट्रांसपोर्टेशन का साधन बन सकता है। लेकिन उसके लिए सरकार के पास विजन और इक्षाशक्ती होनी चाहिए, जो की है नहीं।
बिहार में बाढ़ से बचाव तभी संभव है जब बाढ़ के स्थाई निदान के लिए एक पंचवर्षीय मास्टर प्लान बनाया जाए। इसे पूरा करने के लिए केंद्र सरकार के मदद के अलावा प्रशासन के सभी इकाइयों समेत पंचायत स्तर तक के सिस्टम को इंक्लूड किया जाए।
पिछले 20 सालों में बिहार ने बाढ़ संबंधित जितना खर्च किया है उसके चौथाई रकम मे बिहार ना केवल बाढ़ से मुक्त हो सकता है बल्कि अपने जल संसाधन के इस्तेमाल से दुनिया के सामने एक मॉडल पेश कर सकता है। बिहार मे बाढ़ का निदान तभी संभव है जब
1. नदी किनारे बने हर तटबंध तोड़ा जाएबाढ़ के आपदा से विभीषिका बन जाने की सबसे बड़ी वजह तटबंधों का जाल है। इससे जल एक छोटे क्षेत्र में बंधा रह जाता है, जहां तटबंध टूटती है वहां जल प्रलय हो जाता है। तटबंध नहीं रहेगा तो बाढ़ का पानी समान रूप से विस्तृत जगह में फ़ैल जाएगा, प्रवाह कम रहेगा तो इतना क्षति नहीं होगा। बाढ़ का पानी अभी के मुकाबले अधिक गांवों तक पहुंचेगा लेकिन 1 फीट से ज्यादा नहीं और वो भी अधिक तेजी से निकासी हो जाने के कारण क्षति नहीं पहुंचाएगा।
2. नदियों का उदाहीकरण होनदियों के तल में सिल्ट, मिट्टी, बालू जमा हो जाने के अकारण नदियों का तल उथला हो गया है जहां नदियां अधिक जल नहीं समेट पाती। उड़ाहीकरण से नदियों की जल संभाल पाने की क्षमता बढ़ेगी।
3. नेपाल से समझौता कर बांध बनाया जाएअधिकतम नदियां नेपाल के बरसाती पानी से बनती है। जल संचय के लिए नेपाल में बने बांधों की क्षमता को बढ़ाया जाए। जरूरत पड़ने पर नए बांध बनाया जाए, इससे पनबिजली भी तैयार होने का पोटेंशियल है।
4. नदियों, तालाबों, नहरों का इंटरकनेक्टेड सिस्टम डेवलप हो। अधिकाधिक नहर बनाकर नदियों के जल को चैनलाइज कर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों से दूर भेजा जाए। उन्हें तालाबों, खाली क्षेत्रों से जोड़कर भूजल बढ़ाने में मदद मिलेगी। कांवर झील (बेगूसराय), कुशेश्वरस्थान झील (दरभंगा), घोगाझील (कटिहार), सिमरी बख्तियापुर झील (सहरसा) समेत दर्जनों झील सैकड़ों एकड़ के क्षेत्र में फैले हैं लेकिन रखरखाव और ध्यान के अभाव में इनकी जल संचय क्षमता बहुत कम रह गई है। इनके उड़ाहीकरण और विस्तार से जल संचय बेहद बढ़ जाएगी।
5. बाढ़ प्रभावित ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहां वर्षभर जल जमाव के कारण हजारों एकड़ भूखंड अनुपयोगी रह जाता है। ऐसे क्षेत्रों को चिन्हित कर विशाल जलाशयों और झीलों का निर्माण हो और उन्हें नहरों के माध्यम से नदियों से जोड़ा जाए। ये जलाशय ना केवल बाढ़ के अतिरिक्त जल का संचय करेंगे बल्कि भूजल, सिंचाई आदि का भी साधन बनेंगे।
6. नदियों के किनारे अधिकतम संख्या में पेड़ों को लगाया जाए। एक संकल्प लिया जाए कि हरेक नदी के दोनों किनारे पर कम से कम 20 मीटर तक पेड़ों का सुरक्षा तंत्र बनाया जाए। बिहार को बाढ़ के स्थाई निदान के लिए प्रयास करना होगा। ये एक साल में होगा भी नहीं, पंचवर्षीय प्लान बनाना होगा लेकिन ये करना बेहद ज़रूरी है। नहीं तो हर बार अरबों खर्च करते रहिए, घोटाला करते रहिए, बाढ़ आती रहेगी।