क्या सबका साथ, सबका विकास’ सबसे बड़ा धोखा है ?
कार्यकर्ताओं ने आप पर भरोसा कर के अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया था, उन्हें आप ऐसे अकेले मरने के लिए कैसे छोड़ सकते हैं? क्या चुनाव होते ही जिम्मेदारियाँ खत्म हो जाती हैं? संघ के समय से ही जिस पार्टी का आधार ही कैडर रहा हो, उनके साथ हुई बर्बरता पर सत्ताधारी दल को लिबरलों से सवाल पूछने का अधिकार नहीं है। शर्म आनी चाहिए इन नेताओं को फाँसी से लटकते लाशों की तस्वीरें शेयर करते हुए। किससे और क्या माँगें कर रहे हैं आप? लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता आतताइयों को कुचलने के लिए ही तो मिली है।
‘सबका साथ, सबका विकास’ सबसे बड़ा धोखा है। मुस्लिम कभी आपके नहीं होंगे, आप पाँव पटक-पटक कर मर जाइए। आज मोदी-नड्डा अगर रोजा रखने लगें और हर जिले में मस्जिद बनवा दें, तब भी एक मुसलमान आपको वोट नहीं देगा। लेकिन हाँ, इससे वो हिन्दू ज़रूर छले हुए महसूस करेंगे जिन्होंने आपको वोट दिया है ताकि आप हजारों वर्षों की गुलामी के दाग को मिटा सके। ये पार्टी अब इस लायक नहीं दिख रही। इसके भीतर का जोश खत्म हो चुका है। RSS के भी कंट्रोल से बाहर निकल गई है। खुद संघ लिबरल होने चल निकला है।
मरते कार्यकर्ताओं की तस्वीरें शेयर कर 303 लोकसभा सीटों वाली पार्टी का नेता पूछता है कि फलाँ इस घटना पर चुप क्यों है? जिस दल की 17 राज्यों में सरकार है, वो अपने दर्जनों कार्यकताओं की हत्या का प्रतिरोध धरना देकर करेगा। फिर अन्ना हजारे कौन से बुरे थे? याद कीजिए, देश के बँटवारे के समय जब खूनखराबा हो रहा था तो गाँधी भी धरने पे ही बैठे थे लेकिन कुछ न उखड़ा। ये गाँधीवादी होने की जो चूल है, इसने बड़े-बड़ों को मरवा दिया है। जब गाँधी ही बनना था तो वोट मंदिर के नाम पर क्यों? हजारों विधायक/सांसद क्षेत्र से दूर मोदी के नाम के भरोसे जी रहे।
ये कहना गलत है कि लोग अधीर हो गए हैं और खुद कुछ नहीं करते, केवल भाजपा को दोष दे रहे हैं। उन्होंने सत्ता ही इसीलिए सौंपी है ताकि देशविरोधी ताकतों का नाश हो। वरना कुछ नहीं करना हो तो मनमोहन सिंह बुरे थे क्या? ये सत्ता सिर्फ UPA के भ्रष्टाचारों के खिलाफ नहीं, हिंदुत्व की नींव मजबूत करने के लिए भी मिली है। और 2019 में तो केवल और केवल इसीलिए मिली है। एक-एक भाजपा नेता ने हिंदुत्व के नाम पर वोट माँगा है तो आज वो उन्हें अकेले छोड़ सकते हैं? लाशें गिर रही हैं और हमें ज्ञान नहीं चाहिए। दिखना चाहिए कि एक्शन हो रहा।
ये सब कुछ तभी से शुरू हुआ है, जब शाहीन बाग में उपद्रवी महिलाओं को खुला छोड़ दिया गया। हजारों गाड़ियाँ, लाखों लोग लंबे रूट लेकर महीनों काम पर गए। दिल्ली में दंगे हुए, हिन्दू मरे। देश में कई शाहीन बाग बन गए। आज उन दंगों के आरोपित खुला घूम रहे जमानत पाकर। फिर किसानों को खुली छूट दे दी गई, जब तक मन हो दिल्ली की यूपी व हरियाणा सीमाओं पर बैठे रहो। अब बंगाल में ऐसा खून-खराबा। इतनी नरमी क्यों? देश की संपत्ति और देशवासियों को परेशान करने वालों के साथ ये कैसी दयालुता आपकी? क्या मजबूरी है?
अंतरराष्ट्रीय मीडिया वैसे भी आपको किसानों, दलितों, महिलाओं, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों – सबका विरोधी कहता है। क्या उपद्रवियों के साथ नरमी करने पर वो आपकी छवि सही दिखाएगा? कभी नहीं। एक श्याम द्वारा किसी अब्दुल को थप्पड़ मारने की भी अफवाह भर ही उड़ जाए तो रिहाना ट्वीट कर देगी और NYT में लेख छप जाएगा। लेकिन हाँ, आप आगजनी करते हजार अब्दुलों के पाँव भी पखारेंगे तब भी ये मीडिया आपके खिलाफ दुष्प्रचार ही करेगा। जब बदनाम ही हैं आप तो ये दिखावा कैसे नए सेक्युलरिज़्म का?
चरखा हाथों से चलता है लेकिन शासन तलवार सके चलता है। राजदंड का भय न हो तो आप शासक नहीं हैं। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 हटने के बावजूद अब्दुल्ला-महबूबा हावी हैं। CAA ठीक से लागू हुआ नहीं पूरे देश में। NRC पर आपने डर के मारे पाँव पीछे खींच लिए। राम मंदिर पर फैसला ज़रूर आया लेकिन उसके लिए भी हजारों करोड़ जनता ने ही जुटाए। जनसंख्या नियंत्रण कानून आपके एजेंडे में ही नहीं है। ऐसे बनेंगे हम हिन्दू राष्ट्र या विश्वगुरु? कोरोना कुप्रबंधन में आपका दोष भले कम हो, आप घिरे तो हुए हैं।
हमने अर्थव्यवस्था पर आपको कभी नहीं टोका क्योंकि हम जानते हैं कि ये बढ़ती-घटती रहती है और अगर देश में शांति रही तो GDP बढ़ता रहेगा। लेकिन, जब आपके अपने लोग ही नहीं बचेंगे तो हजारों करोड़ रुपयों के इन इंफ्रास्ट्रक्चर का क्या कार्य? बंगाल में आप सड़क बनवाओ और उसी सड़क पर हिन्दू महिलाओं का गैंगरेप हो तो नहीं चाहिए ये सड़क हमें। अथाह धन तक पहुँच है आपकी, खर्च कीजिए। नैरेटिव बनाइए। हिंदुओं के लिए, हिंदुओं के हित में काम कीजिए। सारे कार्यकता मारे जाएँगे तो भला वोट देने के लिए बचेगा ही कौन आपका?
ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स तक आपकी बात नहीं मान रहे, जबकि चीन जैसे देशों में घिग्घी बँधी रहती है इनकी। यति नरसिंहानंद सरस्वती का गला काटने की धमकी देने वाला अमानतुल्लाह और रोहित सरदाना की मौत का जश्न मनाने वाला शरजील ट्विटर पर है, लेकिन कंगना-रंगोली को सस्पेंड कर दिया गया। अजीत भारती का हैंडल हटा दिया गया। अपने लोगों के लिए आप खड़े नहीं हैं तो सोशल मीडिया में आपके लिए आवाज़ कैसे उठाएगा कोई? OTT पर केवल हिन्दुफोबिक कंटेंट आते हैं, उनका कुछ न उखड़ रहा आपसे।
एक-एक समर्थक अपना समय बर्बाद कर मोदी के लिए क्यों लड़ जाता है किसी से भी? उसे पैसा नहीं मिलता, फिर भी बिके हुए का ठप्पा लगा दिया जाता है पर वो झुकता नहीं। क्योंकि उसे आशाएँ हैं आपसे, जो अब मर रही हैं। इस मंत्रिमंडल में सुषमा, जेटली, पर्रिकर व अनंत सिंह जैसे अनुभवी दिग्गजों के न होने की छाप स्पष्ट दिख रही है। एक वैक्सीन निर्माता तक आतंकित होकर देश से निकल गया। हरियाणा में दूसरी बार सरकार बनी है पर मेवात में हिंदुओं का पलायन जारी है। बंगाल, महाराष्ट्र व झारखंड जैसे राज्यों में सत्ता के खिलाफ चूँ तक करने वाले जेल में ठूँस दिए जाते हैं।
क्या मजबूरी है मुझे नहीं पता। क्या मोदीजी की नहीं चल रही या नड्डा के अध्यक्ष बनने के बाद कई पॉवर सेंटर हो गए हैं? शाह, योगी, राजनाथ में कौन किधर है? संघ किसके साइड है? योगी के CM बनने के बाद ‘हिन्दू युवा वाहिनी’ को भी निष्क्रिय कर दिया गया। ऐसे में जनता उम्मीद लगाए भी तो किससे? क्या भाषण से घाव मिट जाएँगे? ज्ञान बहुत है हमारे पास, हमें कार्रवाई चाहिए। पाकिस्तान-चीन बाहर खड़ा है, भीतर उनके टट्टू। सारे सांसद दिल्ली में ही डेरा जमाते हैं। वहाँ इन दलों के नेताओं का इलाज क्यों नहीं? दिनकर ने ठीक लिखा था, बार-बार पढ़िए:
“अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।”
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