एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जिसे लोग डकैत ना मानकर नेता जी बुलाते थे
अच्छा जो पुराने लोग है बस वही बता सकते हैं की मुलायम सिंह को नेताजी का टाईटल कहाँ से मिला था। और इस टाईटल का सुभाष चंद्र बोस से कोई लेना देना नहीं था, ये वहाँ की लोकल पॉलिटिक्स का टाइटल था।
जब डाकू गब्बर सिंह जैसे बड़े फिल्मी डाकू पर भी केवल 50 हज़ार रुपये का इनाम था उस समय छविराम सिंह यादव पर 1 लाख रुपये का इनाम हुआ करता था।
छविराम सिंह यादव का आतंक 25 जिलों में था उस समय। तीन राज्यों में उनके एनकाउंटर के फरमान निकले हुए थे। छविराम सिंह यादव का नाम सुनते ही लोगों की रूह काँप जाती थी, पुलिस वाले थाना चौकी छोड़ के भाग खड़े होते थे। लेकिन छविराम सिंह यादव थे वो वाले डकैत जो अमीरों को लूटकर गरीबों में दौलत बाँट देते थे। कोई गाँव ऐसा नहीं था जहां उसने गरीबों की बेटियों की शादी ना करवाई हो। उन पर एक भी केस नहीं था किसी महिला पर कैसे भी अत्याचार का। क्यूंकि छविराम सिंह यादव उठे थे अत्याचार के खिलाफ। वो असल में बागी थे, डकैत नहीं।
छविराम सिंह यादव मैनपुरी के औंछा से थे। उन पर पुलिस ने जिन्दा या मुर्दा पकडे जाने का इनाम रखा हुआ था। लेकिन पकड़ने के लिए हिम्मत चाहिए थी । कोई पुलिसवाला उनके नजदीक ही नहीं जाता था। छविराम सिंह यादव जब भी किसी गाँव में जाते थे तो पहले से अनाउंसमेंट कर देते थे की मैं आ रहा हूँ। पुलिस वालों को भी पता होता था, लेकिन वो लोग बात को अनसुनी कर कर देते थे।
छविराम सिंह यादव वहाँ पर गरीबों का मसीहा ही नहीं थे बल्कि वहाँ की राजनीती को भी पूरी तरह से कंट्रोल करते थे। जनता पार्टी के नेता जब वो आते थे तो उनके आने और जाने का पूरा इंतजाम करते थे। गाँव के बाहर तक गाँव के सम्मानित लोग उन्हें छोड़ने जाते थे !
उन्ही में से एक थे जनता पार्टी की यूपी में बनी सरकार के मंत्री साहब।
लेकिन फिर वी पी सिंह मुख्यमंत्री बन गए। और इंदिरा ने तीन राज्यों में छविराम सिंह यादव के एनकाउंटर के नोटिस निकलवा दिया।
पुलिसवालों ने बड़ी टीम बनाकर एक गाँव को फूंक दिया। जगह जगह पर यादवों के एनकाउंटर किये जा रहे थे। सरकार के अनुसार ऑफिसियल 1500 एनकाउंटर हुए थे इस दौरान, लेकिन असल आंकड़ा ज्यादा था, बहुत ज्यादा, लोगों की लाशें ही नहीं मिलती थी।
जब छविराम को पता चला तो उसने थाने में घुसकर उन सभी पुलिसवालों को मार गिराया जिन्होंने गाँव फूंका था या फ़र्ज़ी एनकाउंटर किये थे। उन्होंने उस समय के सीओ को भी उठाकर मीडिया वाले बुला लिए थे के ये रहा तुम्हारा सीओ ! लेकिन फिर बाद में उन्होंने सीओ को छोड़ दिया था, क्यूंकि उसका हाथ नहीं था फ़र्ज़ी एनकाउंटर्स में या गाँव जलाने में।
छविराम सिंह यादव के पास पुलिस से बेहतर शूटर थे, और वो खुद एक बेहतरीन शूटर था, पूरी की पूरी टीम पर भारी पड़ते थे। वो जहां भी जाते खुले में चौपाल लगाकर बैठ जाते थे और वहाँ की चौकियों से पुलिस गायब हो जाया करती थी।
छविराम सिंह यादव लखनऊ गये और वहाँ भी तीन दिन रहे। पुलिस के अलावा सबको पता था की अभी छविराम सिंह यादव लखनऊ में है। और पुलिस वालों को भी पता था, एक बड़े अफसर ने रिटायर होने पर अपनी किताब में लिखा था कि हमने सरकार को भी बताया था की छविराम सिंह यादव अपने 3 साथियों के साथ इस बिल्डिंग में है, लेकिन सरकार ने हिम्मत ही नहीं की।
चूंकि कांग्रेस की सरकार थी और छविराम सिंह यादव पर कोई पुलिसवाला अब हाथ डालने को तैयार ही नहीं था, पुलिसवाले वहां की पोस्टिंग से ही डरने लग गए थे, तो वी पी सिंह ने वहाँ के लोकल कांग्रेसी नेताओं खुशीराम यादव और जदुवीर सिंह यादव को जिम्मेदारी दी के छविराम सिंह यादव से आत्मसमर्पण करवा दो, हम तैयार हैं उनके आत्मसमर्पण के लिए !
वहाँ के एसपी ने भी कह दिया के अगर छविराम सिंह यादव आत्मसमर्पण करता है तो वो लोग तैयार हैं सब कुछ भुलाने के लिए। अब तक 200 से ज्यादा पुलिसवालों को मार चुके थे छविराम सिंह यादव ।
कुछ महीने लगे लेकिन छविराम सिंह यादव आत्समर्पण को तैयार हो गए। हालांकि जनता पार्टी वालों ने छविराम सिंह यादव को चेताया था की ये ट्रैप हो सकता है, लेकिन छविराम सिंह यादव को लोकल कांग्रेसी नेताओं पर भरोसा हो गया था। छविराम सिंह यादव एक गाँव में आकर बैठ गए और मीडिया में खबर फैला दी के वो समर्पण के लिए तैयार हैं।
मीडिया वाले वहाँ पहुंचे और छविराम सिंह यादव की पहली बार तस्वीर वहीँ क्लिक हुई थी। लेकिन पुलिस वालों से बात हुई तो उन्होंने कहा की छविराम सिंह यादव आये ही नहीं है।
अगले दिन अखबार में 2 खबरें छपी थी एक में ये की छविराम सिंह यादव वहाँ आये ही नहीं, और दुसरे में तस्वीर के साथ की छविराम सिंह यादव आये थे आत्मसमर्पण के लिए।
पुलिस को दरअसल मुखबिर मिल गया था लोकल नेताओं के जरिये छविराम सिंह यादव गैंग में। अब वो उसका एनकाउंटर करना चाहती थी। 2000 पुलिस वाले इकट्ठे हुए थे सेंगर नदी की तलहटी में,
जहां छविराम सिंह यादव के मुखबिर के अनुसार छविराम सिंह यादव अभी था। इतनी बड़ी तादाद में ना उस से पहले कभी फाॅर्स डेप्लॉय हुई थी, ना उसके बाद, किसी एक इंसान को पकड़ने के लिए। 2000 लोगों की फौज हुआ करती थी पुराने जमाने में राजे महाराजों की।
लेकिन छविराम सिंह यादव आसान शिकार नहीं थे, 17 घंटे तक फायरिंग चली, घेराबंदी चली। पुराने लोगों को आजतक याद है वो गोलीबारी, जंग का मैदान बन गया था इलाका, लाइव क्रिकेट मैच की तरह देख रहे थे लोग वो युद्ध। और छविराम सिंह यादव के साथ कितने लोग थे ? केवल 8 ! छविराम सिंह यादव ने अकेले पुलिस के घेरे को कई बार तोडा था। आखिर में छविराम सिंह यादव मारे गए, कई पुलिस वाले भी शहीद हो गए।
ये इतनी बड़ी खबर थी के अगले ही दिन मुख्यमंत्री वी पी सिंह खुद मैनपुरी आये, और सभी पुलिस वालों के साथ फोटो खिंचवाई।
लेकिन उस गोलीबारी और मुख्यमंत्री साहब के साथ तस्वीर से ज्यादा यादगार उस समय के लोगों में एक तस्वीर और रही है और शायद हमेशा रहेगी, वो तस्वीर थी के पुलिसवालों ने लोकल जनता को दिखाने के लिए के उनका बागी मसीहा मारा जा चुका है,
छविराम सिंह यादव और उसके साथियों के शरीर को ऊंची लकड़ियां गाड़कर उनपर लटकाया था। कई दिनों तक वो लाशें उन्ही लकड़ियों पर लटकती रही थी, ताकि लोकल लोग आते जाते देखें की छविराम सिंह यादव मारा जा चुका है।
लेकिन लोकल जनता ने इसे बगावत की कहानी का अंत नहीं माना, पता है छविराम सिंह यादव को उसके इलाके के लोग और सारे डकैत किस नाम से बुलाया करते थे? “नेताजी