जानिए ग्राम विधूना में ऋषि मार्कण्डेय की तपोभूमि पर लगने वाला यह मेला क्यों है बिख्यात
घिरोर: क्षेत्र के ग्राम विधूना में मार्कण्डेय ऋषि ने प्राचीन काल में तपस्या की थी। यहां की पावन भूमि पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं। ग्राम विधूना में लगने वाले मार्कण्डेय ऋषि मेला शुरू हो गया है । श्रद्धालुओं ने पवित्र सरोवर में आस्था की डुबकी लगाई और मनौतियां मांगी। पूजा अर्चना कर मोक्ष की कामना की गई। इस दौरान महाभारत कालीन अवशेष देखने के लिए भी लोगों में होड़ नजर आयी।
ऋषि मार्कण्डेय की तपोभूमि पर लगने वाला यह मेला उत्तर भारत में दूर-दूर तक बिख्यात है। मार्ग शीर्ष के महीने में लगने वाले इस मेले में दूर-दूर से यात्री आते हैं। मान्यता है कि यहां बने कुण्ड में डुबकी लगाने से चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
प्रतिवर्ष यहां बड़ी श्रद्धा और उल्लास के वातावरण में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। लोगों का विश्वास है कि यहां बने कुण्ड में स्नान करने से चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाती है। यद्यपि इस तालाब में कभी-कभी पानी कम कीचड़ ज्यादा होता है फिर भी लोग चर्म रोगों से छुटकारा पाने की लालसा में तालाब में डुबकी अवश्य लगाते हैं।
महाभारत तथा रामायण काल की कई गाथाओं को समेटे महर्षि मार्कण्डेय की तपोभूमि पूरे भारत में प्रसिद्ध है। महर्षि मार्कण्डेय के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने तप से यमराज को भी परास्त कर दिया तथा अपनी अल्प आयु को दीर्घ आयु में परिवर्तित करने का काम किया। शुक्रवार को हजारों की भीड़ मेले में पहुंची। झूले, खेल, तमाशों वाले के साथ बाजार सजे हुए हैं। सुरक्षा के लिए अस्थाई पुलिस चौकी भी बना दी है।
सीता ने यहीं गुजारे वनवास के दिन
मान्यता है कि विधूना में घना जंगल था। इसी जंगल में वाल्मीकि ऋषि की कुटिया थी। वनवास के दौरान लक्ष्मण सीता को यहीं छोड़कर अयोध्या वापस चले गए थे। तब सीता ने वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में शरण ली। आज भी सीता की रसोई एव वाल्मीकि कुटिया के प्रतीक मौजूद है।
यहीं था महाभारत काल के विदुर का किला
बताया जाता है कि विधूना गांव में महाभारत काल के विदुर का किला था ऐसी किवदंती है कि भगवान कृष्ण ने विदुर के घर झूठे साग का सेवन किया था। ऐसा भी माना जाता है कि पांडवो ने अपने अज्ञातवास के दिन यहीं गुजारे थे। विदुर के टीले से चंद कदमों की दूरी पर